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किसानों की अनुकूलन को मदद कम, सब्सिडी ज़्यादा

उत्तराखंड

किसानों की अनुकूलन को मदद कम, सब्सिडी ज़्यादा

दुनिया भर में छोटे किसान – जो आधी से ज़्यादा खाद्य कैलोरी पैदा करते हैं – जलवायु संकट की मार झेल रहे हैं। लेकिन उनकी मदद के लिए जितनी रकम चाहिए, दुनिया उतना पैसा किसी और चीज़ पर नहीं, बल्कि हानिकारक कृषि सब्सिडियों पर खर्च कर रही है।

नए विश्लेषण के मुताबिक, छोटे किसानों के जलवायु अनुकूलन (adaptation) की वार्षिक लागत 443 बिलियन डॉलर है, जो उस 470 बिलियन डॉलर से भी कम है जो हर साल उन कृषि सब्सिडियों पर खर्च हो रहा है जो
न तो किसानों के लिए टिकाऊ हैं और न ही धरती के लिए।

यह शोध Climate Focus ने Family Farmers for Climate Action नामक नई वैश्विक एलायंस के लिए किया है,
जो 95 मिलियन छोटे किसानों का प्रतिनिधित्व करती है – अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, एशिया और पैसिफ़िक के परिवारिक किसानों की एक सामूहिक आवाज़।

कितना खर्च चाहिए, कितना हो रहा है

रिपोर्ट बताती है कि 10 हेक्टेयर या उससे कम ज़मीन वाले किसानों को हर साल औसतन $952 प्रति हेक्टेयर,
यानि लगभग $2.19 प्रतिदिन, अपने खेतों को जलवायु प्रभावों से अनुकूल बनाने में लगाने होंगे।

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यह 443 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष की जरूरत बनती है।
इसके मुकाबले,

2021 में छोटे किसानों के लिए वैश्विक अनुकूलन फाइनेंस सिर्फ़ 1.59 बिलियन डॉलर रहा,
यानी ज़रूरत का सिर्फ़ 0.36%।
छोटे किसान खुद अपनी आय का 20–40% अनुकूलन उपायों पर खर्च कर रहे हैं –
कुल मिलाकर लगभग $368 बिलियन सालाना।
दूसरे शब्दों में –
किसान पहले से अपने अस्तित्व की कीमत चुका रहे हैं, जबकि वैश्विक सहायता अभी भी ऊँगली भर है।

“ये दान नहीं, निवेश है” – किसानों की आवाज़

पूर्वी अफ्रीका किसान संघ (EAFF) की अध्यक्ष एलिज़ाबेथ न्सिमादाला ने कहा, “यह कोई दान नहीं, निवेश है –
पूरी दुनिया की खाद्य सुरक्षा में निवेश। छोटे किसान आधी दुनिया का खाना उगाते हैं,
2.5 अरब लोगों की रोज़ी उनसे जुड़ी है, और चावल, गेहूं, कोको और कॉफ़ी जैसी वैश्विक फसलों की रीढ़ भी वही हैं।”

दक्षिण ब्राज़ील के एग्रोफॉरेस्ट्री किसान थालेस मेंडोन्सा ने कहा, “छोटे किसानों में निवेश सिर्फ़ आर्थिक नहीं,
यह एक पारिस्थितिक ज़रूरत है। हम एग्रोइकोलॉजी जैसी प्रणालियाँ अपना रहे हैं जो मिट्टी को, जल स्रोतों को, और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को फिर से जीवित कर रही हैं। हमें बस इतना चाहिए कि दुनिया इस प्रयास को विस्तार देने में साथ दे।”

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COP30 पर केंद्र में रहेगा एडेप्टेशन

रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब ब्राज़ील में होने वाले COP30 जलवायु सम्मेलन में एडेप्टेशन (अनुकूलन) को चर्चा का केंद्र बनाया जा रहा है। सम्मेलन में यह तय होना है कि “ग्लोबल गोल ऑन एडेप्टेशन” को मापने के लिए किन संकेतकों (indicators) का इस्तेमाल होगा, लेकिन अभी तक उसमें छोटे किसानों के लिए फाइनेंस फ्लो को मापने का कोई सूचक नहीं है।

साथ ही, अब भी यह स्पष्ट नहीं है कि विकसित देश 2025 तक एडेप्टेशन फाइनेंस को दोगुना कर 38–40 बिलियन डॉलर तक पहुँचाने का वादा पूरा करेंगे या नहीं।

ब्राज़ील की पहल: किसानों की आवाज़ को मंच देने की कोशिश

ब्राज़ील की अध्यक्षता में COP30 का Action Agenda एग्रोइकोलॉजी जैसी टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। इसमें “Circle of Peoples” नामक मंच के ज़रिए किसानों की आवाज़ को सीधे वित्त, नुकसान-भरपाई (loss and damage), और just transition की चर्चाओं में शामिल करने की योजना है।

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एशियाई किसान संघ (AFA) की महासचिव एस्थर पेनुनिया ने कहा, “सरकारों को अब एडेप्टेशन फाइनेंस में बड़ा इज़ाफ़ा करना होगा। सूखा, बाढ़, और लू जैसी आपदाओं से हमारे खेत तबाह हो रहे हैं। अगर वित्त सीधे किसानों और उनकी संगठनों तक पहुँचे, तो असर सबसे तेज़ और गहरा होगा।”

उन्होंने यह भी कहा कि “Farmers Resiliency Fund” नाम का नया कोष बनाया जाना चाहिए, जिसका संचालन खुद किसान संगठनों के हाथ में हो, ताकि पैसा उन तक पहुँचे जो ज़मीन पर असली काम कर रहे हैं।

निष्कर्ष

रिपोर्ट एक सीधा सवाल उठाती है – अगर दुनिया हर साल 470 बिलियन डॉलर हानिकारक सब्सिडियों पर खर्च कर सकती है, तो फिर 443 बिलियन डॉलर छोटे किसानों की जलवायु सुरक्षा के लिए क्यों नहीं?

आख़िरकार, यही किसान हैं जो धरती की आधी भूख मिटाते हैं, और अब उसी धरती के बदलते मौसम से सबसे पहले और सबसे ज़्यादा लड़ रहे हैं।

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