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सोलर-स्टोरेज कॉम्बो से मिलेगी सस्ती बिजली, होगी 60 हज़ार करोड़ की बचत

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सोलर-स्टोरेज कॉम्बो से मिलेगी सस्ती बिजली, होगी 60 हज़ार करोड़ की बचत

भारत ने स्वच्छ ऊर्जा की दौड़ में एक और बड़ी छलांग लगाई है। तय समय से पाँच साल पहले ही देश ने अपनी कुल बिजली क्षमता का 50% हिस्सा गैर-फॉसिल (यानी कोयला और गैस से हटकर) स्रोतों से हासिल कर लिया है।

अब एक नई स्टडी बता रही है कि अगर आने वाले सालों में भारत ने ऊर्जा भंडारण (energy storage) पर तेजी से काम किया, तो न सिर्फ़ 2030 के लक्ष्य आसानी से पूरे होंगे बल्कि लोगों के बिजली के बिल भी हल्के हो जाएंगे।

कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले के इंडिया एनर्जी एंड क्लाइमेट सेंटर और पावर फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट कहती है कि 2030 तक भारत को 500 गीगावॉट क्लीन एनर्जी और 61 गीगावॉट स्टोरेज की ज़रूरत होगी। 2032 तक ये ज़रूरत बढ़कर 600 गीगावॉट क्लीन एनर्जी और 97 गीगावॉट स्टोरेज तक पहुँच जाएगी। अभी हमारे पास सिर्फ़ 6 गीगावॉट स्टोरेज है, वो भी ज़्यादातर पंप्ड हाइड्रो के रूप में।

रिपोर्ट के लीड ऑथर डॉ. निकित अभ्यंकर का कहना है, “हम 500 गीगावॉट के लक्ष्य के आधे रास्ते तक पहुँच चुके हैं। अब सबसे बड़ा कदम है स्टोरेज को तेज़ी से बढ़ाना ताकि साफ़ ऊर्जा 24×7 उपलब्ध हो सके। इसके लिए 2032 तक 3-4 लाख करोड़ रुपये का निवेश चाहिए होगा, लेकिन फायदा बहुत बड़ा है-हर साल उपभोक्ताओं को करीब 60 हज़ार करोड़ रुपये की बचत।”

ये बचत कैसे होगी?
दरअसल, बैटरियों के दाम 2021 से अब तक 65% गिर चुके हैं। ऐसे में सोलर + स्टोरेज प्रोजेक्ट अब सिर्फ़ 3-3.5 रुपये प्रति यूनिट में पीक टाइम पर बिजली दे सकते हैं। इन्हें बनाने में सिर्फ़ डेढ़–दो साल लगते हैं, जबकि नई कोयला आधारित बिजली परियोजनाओं को बनने में कई गुना ज्यादा समय और पैसा लगता है।

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पावर मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव और पावर फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया के डायरेक्टर जनरल श्रीकांत नागुलापल्ली ने कहा,
“ऊर्जा भंडारण भारत की स्वच्छ ऊर्जा दृष्टि का दिल है। यही लचीले और मज़बूत ग्रिड की रीढ़ बनेगा, जो पीक लोड संभालेगा, नवीकरणीय स्रोतों की पूरी क्षमता निकालेगा और ग्रिड को स्थिर रखेगा।”

रिपोर्ट यह भी बताती है कि अगर भारत स्टोरेज को समय पर नहीं बढ़ा पाया, तो कई महँगे थर्मल पावर प्लांट फँसे हुए (stranded assets) साबित हो सकते हैं। 2032 तक करीब 25-30% मौजूदा कोयला संयंत्र सिर्फ़ 30% से भी कम क्षमता पर चलने के ख़तरे में होंगे।

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लेकिन तस्वीर उतनी चिंताजनक नहीं जितनी लगती है। बैटरी मैन्युफैक्चरिंग में भारत पहले से ही तेज़ी से निवेश कर रहा है। 2030 तक 200 GWh से ज़्यादा क्षमता बनने की उम्मीद है। सरकार की PLI योजना, VGF, बैटरी रीसाइक्लिंग और ज़रूरी मिनरल्स की सप्लाई चेन इस दिशा में मदद कर रही है।

डॉ. अभ्यंकर ने साफ़ कहा-
“हमने साबित कर दिया है कि भारत नवीकरणीय ऊर्जा को स्केल कर सकता है। अब चुनौती है ग्रिड की लचक और भरोसेमंदी। इसका हल सिर्फ़ एक है: ऊर्जा भंडारण। यही हमें सस्ती, भरोसेमंद और आत्मनिर्भर ऊर्जा भविष्य की ओर ले जाएगा।”

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